बहुत दिल को कुशादा कर लिया क्या
ज़माने भर से वादा कर लिया क्या
तो क्या सचमुच जुदाई मुझ से कर ली
ख़ुद अपने को आधा कर लिया क्या..
जॉन एलिया साहब का ये शेर जब भी याद आता है बरबस गुजरा जमाना याद आता है, डॉ कुमार विश्वास ही नहीं बल्कि तमाम जॉन को पढ़ने वाले अक्सर यही बात कहते है। जॉन साहब कहते थे कि आप मुझसे दूर ही रहिए क्योंकि " मैं जो हूं,
जॉन एलिया हूं।"
कुमार ने इन्हें शायरी का चे ग्वेरा कहा है। उन्होंने कहा कि मैं जो हूं, जैसा भी हूं, मुझे ऐसा ही स्वीकार कीजिए। खुदरंग इंसान जिस पर कभी दूसरा रंग चढ़ ही नहीं सकता, खुद अपने आप में बेमिसाल।
"वही हिसाबे तमन्ना है अब भी आ जाओ
वही है सर वही सौदा है, अब भी आ जाओ
जिसे गए हुए खुद से अब इक जमाना हुआ
वो अब तुम में खटकता है, अब भी आ जाओ"
जॉन सारा जीवन एक अजीब सी उदेड़बुन में लगे रहे शायद उस जमाने के लोग उन्हें समझ ही नहीं पाए
" तू अगर आइयो तो जाइयो मत
और अगर जाइयो तो आइयो मत"
अमरोहा की मिठास पाकिस्तान जानें के बाद भी कम ना हो सकी,जॉन चले गए लेकिन हिंदुस्तान के लिए आने वाला कल छोड़ के गए।
जब से हिंदुस्तानी युवा ने जॉन को सुना है दीवाना हुए फिरता है, चंद शेरों में एक शेर जॉन का मिलता ही है।
ये पढ़िए
"सारी दुनिया के गम हमारे है
उस पर सितम ये कि हम तुम्हारे है
और तो हम ने क्या किया अब तक
ये किया है कि दिन गुजारे है"।
अब आप ही बताइए इन चंद अल्फाजों में जॉन आपका आईना बन गए या नहीं, जवाब हां ही होगा। और हा एक बात ये भी करामात है कि जिसने एक बार जॉन को पढ़ लिया फिर उसने कभी जॉन को छोड़ा नहीं, आदमी के एकाकी जीवन के दुर्लभ क्षणों के आवेश को जॉन ने हर्फ हर्फ उतारा है फिर कोई कैसे जुदा हो।
मन तो ये है कि लिखते ही जाए लेकिन वर्णों में जॉन को समेटना नामुमकिन है फिर भी एक मिसरा तो कह ही देते है
"ख़ुद से हम इक नफस हिले भी कहां
उस को ढूंढे तो वो मिले भी कहां
गम न होता जो खिल के मुरझाते
गम तो ये है कि हम खिले भी कहां।"
लेकिन आप क्यों मुरझा रहे है आप तो जॉन को पढ़ते रहिए और मुस्कुराते रहिए 💕