Thursday, 10 March 2022

मैं जो हूं जॉन एलिया हूं : डॉ. कुमार विश्वास

बहुत दिल को कुशादा कर लिया क्या
ज़माने भर से वादा कर लिया क्या
तो क्या सचमुच जुदाई मुझ से कर ली
ख़ुद अपने को आधा कर लिया क्या..

जॉन एलिया साहब का ये शेर जब भी याद आता है बरबस गुजरा जमाना याद आता है, डॉ कुमार विश्वास ही नहीं बल्कि तमाम जॉन को पढ़ने वाले अक्सर यही बात कहते है। जॉन साहब कहते थे कि आप मुझसे दूर ही रहिए क्योंकि " मैं जो हूं,
                      जॉन एलिया हूं।"
कुमार ने इन्हें शायरी का चे ग्वेरा कहा है। उन्होंने कहा कि मैं जो हूं, जैसा भी हूं, मुझे ऐसा ही स्वीकार कीजिए। खुदरंग इंसान जिस पर कभी दूसरा रंग चढ़ ही नहीं सकता, खुद अपने आप में बेमिसाल।
 "वही हिसाबे तमन्ना है अब भी आ जाओ
वही है सर वही सौदा है, अब भी आ जाओ
जिसे गए हुए खुद से अब इक जमाना हुआ
वो अब तुम में खटकता है, अब भी आ जाओ"
 
जॉन सारा जीवन एक अजीब सी उदेड़बुन में लगे रहे शायद उस जमाने के लोग उन्हें समझ ही नहीं पाए
" तू अगर आइयो तो जाइयो मत
और अगर जाइयो तो आइयो मत"

अमरोहा की मिठास पाकिस्तान जानें के बाद भी कम ना हो सकी,जॉन चले गए लेकिन हिंदुस्तान के लिए आने वाला कल छोड़ के गए।
जब से हिंदुस्तानी युवा ने जॉन को सुना है दीवाना हुए फिरता है, चंद शेरों में एक शेर जॉन का मिलता ही है।
 ये पढ़िए
"सारी दुनिया के गम हमारे है
उस पर सितम ये कि हम तुम्हारे है
और तो हम ने क्या किया अब तक
ये किया है कि दिन गुजारे है"।

अब आप ही बताइए इन चंद अल्फाजों में जॉन आपका आईना बन गए या नहीं, जवाब हां ही होगा। और हा एक बात ये भी करामात है कि जिसने एक बार जॉन को पढ़ लिया फिर उसने कभी जॉन को छोड़ा नहीं, आदमी के एकाकी जीवन के दुर्लभ क्षणों के आवेश को जॉन ने हर्फ हर्फ उतारा है फिर कोई कैसे जुदा हो।
मन तो ये है कि लिखते ही जाए लेकिन वर्णों में जॉन को समेटना नामुमकिन है फिर भी एक मिसरा तो कह ही देते है 
"ख़ुद से हम इक नफस हिले भी कहां
उस को ढूंढे तो वो मिले भी कहां
गम न होता जो खिल के मुरझाते
गम तो ये है कि हम खिले भी कहां।"

लेकिन आप क्यों मुरझा रहे है आप तो जॉन को पढ़ते रहिए और मुस्कुराते रहिए 💕

Tuesday, 8 March 2022

Break the Bias (महिला दिवस) विशेष

स्त्री वो, जो आदमी के शर्ट के टूटे बटन से लेकर टूटा हुआ आत्म विश्वास तक जोड़ दे

कभी सोचा है कि महिलाओं के लिए अलग से एक दिवस बनाने की क्यों आवश्यकता पड़ी, कई तो महिला दिवस से आंकलन महिलाओं के लिए साल में एक ही दिन आता है, इससे भी लगाते है, देखा जाए तो हर दिन महिला दिवस ही तो है, पुरुष प्रधान समाज के दिमाग में सुबह के जागने से लेकर सोने तक कोई छवि घूमती है तो महिला ही तो है बस उसके रूप अलग अलग होते है कभी मां, बहन, पत्नी, दोस्त या फिर जैसा हम मस्तिष्क में सोच लेते है । लेकिन सच्चाई में यह दिवस हमको याद दिलाता है कि हमारी सृष्टि की बागड़ोर जिसके हाथ में है उनके लिए क्यों न एक स्पेशल दिन रखा जाए और उत्सव की तरह मनाया जाए, वैसे हमारे बीच मातृ सत्तात्मक सोच रखने वाले बहुत कम लोग ही होंगे।
महिलाओं के लिए वर्तमान समाज में कोई विशेषाधिकार की आवश्यकता नहीं है लेकिन जो मूलभूत जरूरतें है उन्हें तो इस समाज द्वारा पूरा किया जाना चाहिए।
महिला उत्थान के लिए कोई स्पेशल भाषण देना मुझ पर नहीं आता लेकिन मूवी के माध्यम से जब भी महिलाओं के अधिकारों की बात रखी जाती है तो दिल करता है हर महिला इसको देखे और हर पुरुष महसूस करे।

NH 10, कहानी, पिंक, थप्पड़ जैसी मूवी हमने देखी और उनके अंदर के दर्द को महसूस भी किया, लेकिन क्या समाज की सोच में कुछ परिवर्तन हुआ है, इसका जवाब शायद ही हां मिले, थोड़ा सा हुआ होगा वो भी सिर्फ युवा वर्ग, क्योंकि ये वर्ग सक्रिय है और वो  ये सब महसूस करता है क्योंकि उन्हे ये महसूस करवाने और बहस करने के लिए लड़कियों का एक वर्ग मौजूद है, ऐसा हमसे पहले वाली पीढ़ी में नहीं है इसलिए उन्हें समझाना आज भी उतना ही चुनौती पूर्ण है और उनके साथ महिला वर्ग भी है।
कुछ मुद्दे ऐसे भी होते है जिन्हें उठाने से पहले हम सोच लेते है कि दुनिया क्या कहेगी जैसे हमने PADMAN मूवी में देखा था और जब वो मुद्दा सार्वजनिक बहस का मुद्दा बन जाता है तो हम उसका समर्थन करने लगते है।

कुछ मूवी है जिन्हें पुरुष वर्ग को गौर से देखना चाहिए और सोचना चाहिए कि ये मूवी क्यों बनाई गई, जैसे ,
Dolly Kitty Aur Woh Chamkte Sitare, Is Love Enough?Sir, rat akeli hai, जब हम इन्हें देखेंगे तो  सोचेंगे की शायद इसके लिए हम ही जिम्मेदार है और सच में हम ही है। महिला वर्ग भी देखें तो शायद उनकी चेतना में भी जागृति आयेगी कि ये मुद्दे भी समाज के सामने रखे जाने चाहिए,
हॉरर मूवी के माध्यम से भी कभी कभी समाज को संदेश दिया जाता है मैंने कुछ दिन पूर्व ही Bulbbul & Chhorii मूवी देखी, हो सके तो जरूर देखना थोड़ी सी डरावनी जरूर है लेकिन इनके पीछे दर्द को महसूस करना। बुलबुल हमको स्त्री का स्त्री होना बतलाती है वही छोरी मूवी में पुरानी प्रथा के समर्थन में कैसे महिला ही महिला के उत्थान में बाधक बन जाती है ये दिखलाया है।
अब महिला या पुरुष के सोचने का विषय नही रहा, अब सोचना चाहिए कि समाज के दकियानूसी नियम जो वर्षों पहले पुरुष प्रधान समाज ने अपनी लंगोट बचाने के लिए बनाए थे उन्हें हटाने के लिए महिलाओं से पहले पुरुष को ही पहल करनी चाहिए।
समाज के नियम सामाजिक उत्थान के लिए बनाए जाते है लेकिन उनकी एक वैलिडिटी होती है जब समाज के नियम समाज में उत्थान की बजाय पतन का काम करने लगे तो समझ लेना चाहिए इन्हें बदलने का वक्त आ गया है लेकिन हम विरोध करने वाले को दबाने वाली श्रेणी के लोग है इसलिए सबसे पहले हमको खुद की गिरेबां में झांक कर देखना चाहिए ताकि समाज में बदलाब का हिस्सा बन सके।
कोई किसी से कम नहीं, सबको समानता जैसे मुहावरे समाज के मुख्य भाग होने चाहिए, अगर हम समाज की विकृत सोच को बदल पाए तो सही मायने में महिला दिवस वही होगा। 
                              जय हिंद।

Monday, 7 March 2022

Hawaizaada मूवी समीक्षा : भारत का हवाई सफर

दिल ए नादान तुझे हुआ क्या है,
आखिर इस दर्द की दवा क्या है, 
हम है मुश्ताक और वो बे ज़ार, 
या इलाही ये माजरा क्या है...
कल यूहीं बैठे बैठे मिर्ज़ा गालिब साहब की ये ग़जल याद आई तो बरबस ही गूगल पर सर्च कर डाला और जो परिणाम सामने आए वो बेहद ही चौंकाने वाले थे आयुष्मान खुराना ने किसी Hawaizaada मूवी में इस ग़जल को गाया है, गाने के साथ साथ मूवी का टाईटल देखा तो और माथा ठनका फिर सोचा क्यों न आज ये मूवी देखी जाए, बस फिर हो गए शुरू....
चलो अब मूवी पर आते है
साल 2015 के आखिर में रिलीज हुई ये मूवी अपने अंदर बहुत सारा इतिहास और वैदिक शास्त्र समेटे हुए है, साथ ही ये मूवी आपको वैश्विक एवम भारतीय विमान निर्माण के इतिहास को समझने का दृष्टिकोण भी प्रस्तुत करती है, वैसे शुरुआत के 10 मिनट शायद आप बोर भी हो सकते हो लेकिन मूवी के पात्रों को समझने के लिए देखना जरूरी होगा।
शिवकर बापू जी तलपड़े शायद आपने ये नाम सुना हो मैंने इस मूवी से पहले ये नाम नहीं सुना था, शिवकर बापू जी तलपड़े भारतीय विद्वान थे जिन्होंने सबसे पहले मानव रहित विमान का निर्माण किया है, हवाई जहाज का जनक चाहे राइट बंधु को माना गया हो लेकिन शिवकर बापू ने राइट बंधु से 8 साल पहले इस तरह का विमान निर्माण कर लिया था जो जुहू बीच पर लगभग 1500 फीट की ऊंचाई तक उड़ा था, उनके विमान बनाने की घटना पर आधारित इस मूवी में विमान बनाने के शास्त्रीय ज्ञान के साथ साथ कालिदास कृत अभिज्ञान शकुंतलम के नाटक को भी दिखाया गया है।
शिवकर बापू के गुरु के रूप में मिथुन चक्रवर्ती उर्फ शास्त्री जी का किरदार काबिल ए तारीफ है, मूवी में उनके पास बताई गई विमान शास्त्र की किताब महर्षि भारद्वाज द्वारा लिखित प्राचीन भारतीय विमान शास्त्र ही है ऐसा मेरा और दर्शकों का भी अनुमान रहेगा, शिवकर के किरदार के साथ आयुष्मान खुराना पूर्णरूप से न्याय करते नजर आते है, भारतीय मूल की ऑस्ट्रेलियाई अभिनेत्री पल्लवी शारदा ने अपने संवाद से अलग की जान फूंकी है
"प्यार में डूबा हुआ आदमी अपनी औकात से ज्यादा काम कर जाता है"
बड़ौदा महाराज द्वारा अंग्रेज गुलामी में भी भारतीयों की मदद करते रहना और साथ साथ ही शिवकर के साथी खान द्वारा शिवकर बापू को मदद, ये मूवी के वो अहम हिस्से है जिन पर सबसे ज्यादा ध्यान देने की जरूरत है, एक हिस्सा गुलाम राजा में स्वाधीनता की ललक को दिखाता है और दूसरा हिस्सा हिंदू मुस्लिम एकता को प्रदर्शित करता है
मूवी में लोकमान्य तिलक द्वारा शुरू किए गए गणेश महोत्सव को भी दिखाया गया है।
अंग्रेजी सत्ता के समय की ये कहानी शायद अब सोचने या देखने पर थोड़ी सी बचकानी लगे लेकिन खुद को उस समय के अनुसार डाल कर देखने पर भारतीय इतिहास को गौर से समझने पर विवश कर देती है,
समर्पण इस मूवी की आत्मा है जो शास्त्री जी, शिवी और सितारा को एक सूत्र में पिरोए रखती है।
मूवी सत्य घटना पर आधारित है या नहीं, इसके बारे में मेरे विचार शून्य है लेकिन शिवकर बापू जी के भारतीय विमान बनाने के दावे से इंकार नहीं किया जा सकता है
निर्देशक विभु पूरी जी ने मूवी को उच्च संवाद और शालीनता के साथ बनाया है, मिर्जा गालिब साहब की ग़जल के साथ डाक टिकट वाले गाने ने अपना जादू बिखेरा है, उड़ जायेगा हंस अकेला गाना मूवी के मार्मिक दर्द को बयां करता है।
2 घंटे 9 मिनट की मूवी से इतिहास के साथ साथ वैज्ञानिक दर्शन और मार्मिक संवाद का मिश्रण शायद पहली बार देखने को मिलता है। 
                            वंदे मातरम् ।



Thursday, 24 February 2022

श्याम सिंघा रॉय (मूवी समीक्षा)

जरूर देखें।

(श्याम सिंघा रॉय) 
हाल ही में अभिनेता नानी की तेलुगू मूवी रिलीज हुई है उसका नाम है श्याम सिंघा रॉय..
पुनर्जन्म पर आधारित 2.35 घंटे की ये कहानी आपको एक पल के लिए भी स्क्रीन से हटने नहीं देगी।
कहानी की शुरुआत वासु के किरदार से होती है जो डायरेक्टर बनना चाहता है लेकिन कहानी का अहम हिस्सा वासु का श्याम सिंघा रॉय होना ही है,
कलम की ताकत समाज में क्या बदलाब ला सकती है वो इस मूवी के माध्यम से समझा जा सकता है, समाज के हर बदलाब में हमेशा कलम का हाथ रहा है, कलम प्रेरणा देती है समाज की सच्चाई को लिखने की, वर्तमान परिपेक्ष्य में लेखकों के लिए एक प्रेरणादायी संदेश है ये मूवी...
ये मूवी भारतीय समाज की दूषित परंपराओं पर भी करारा प्रहार करती है, समाज में दलित होना एक अपराध सा है, 70 के दशक के दिखाए गए दृश्य की सच्चाई आज भी अखबार में आने वाली खबरों से प्रमाणित होती है, 50 साल बाद भी हम खुद को नहीं बदल पाए है, सोचने पर मजबूर करती है ये मूवी..
देवदासी प्रथा, कहने को तो भगवान की पत्नी के रूप में इन्हें माना गया लेकिन इस घिनौनी प्रथा के नाम पर कितनी महिलाओं के साथ बलात्कार होते रहे कितनी छोटी बच्चियों को बेरहमी से कुचला गया शायद आज भी इस तरह की कुप्रथाएं चलन में है, समाज में कोई भी कुप्रथाएं हो हमारा फर्ज बनता है कि उसके खिलाफ आवाज उठाएं..
बुलंद आवाज को रोकने के लिए परिवार वालों का ही खलनायक हो जाना बरसों से चला आ रहा है एक घटनाक्रम है जिसमें सिर्फ किरदार बदलते रहे है, समाज के नाम पर या तो डर कर या फिर डरा कर अपनों को ही सामने लाया जाता है,इस मूवी में भी यही दिखाया गया है जो एक कड़वा सच है कब तक हम ऐसा करते रहेंगे,अब हमें खुद को बदलना होगा और देना होगा साथ हर बुलंद आवाज का....
ये मूवी हमको दिखाती है अवचेतन से चेतना की ओर जाने का रास्ता, वहीं चेतना जो हमको इंसान बनाती है,  "ये समाज इंसान से बना है ना कि इंसान इस समाज से" समाज के नियम कायदे वक्त के हिसाब से बदले जाने चाहिए लेकिन ये संभव तब होगा जब हम चेतन अवस्था में आएंगे, पढे लिखे मूर्ख लोगों की भीड़ है हम, हमको अखबार की एक खबर गुमराह कर देती है क्योंकि हम हमेशा अवचेतन रहे है, अब जागने का वक्त है..
किरदार के रूप में बात करे तो नानी(नवीन बाबू) का काम हमेशा काबिल ए तारीफ रहा है, वासु से लेकर श्याम सिंघा रॉय बनने तक हर जगह उन्होंने छाप छोड़ी है, वासु में अपनी काबिलियत से कुछ करने का जुनून है तो श्याम में भगत सिंह सी निडरता है, कीर्ति शेट्टी एक उभरती हुई साउथ एक्ट्रेस है जिन्होंने अपने किरदार के साथ न्याय किया है, साईं पल्लवी एक मंझी हुई अदाकारा है देवदासी से रोज़ी तक के सफर में उनके चेहरे के भाव दर्शकों को हमेशा आकर्षित करेंगे, कीर्ति शेट्टी की मोहक अदाओं के जादू को एक चुटकी में गायब कर देते है साईं पल्लवी के भाव, मैडोना सेबेस्टियन और मुरली शर्मा एडवोकेट की भूमिका में शानदार रहे है, मैडोना अदाकारा और गायिका दोनों है, मूवी का प्रत्येक पात्र दर्पण की तरह है जो हमको हमारे समाज के 50 साल के चरित्र को दिखाता है और हमको महसूस करवाता है कि क्या हमने कुछ बदलाव किया है या आज भी हम उस ही दहलीज पर खड़े है..
पुनर्जन्म को हिंदू, बौद्ध और जैन संस्कृति ने भी स्वीकार किया है, वैज्ञानिक आधार पर ये नहीं माना जाता रहा है लेकिन 1935 में शांति देवी मामले में हमारे देश के महानतम वकील और राष्ट्रपिता कहलाने वाले महात्मा गांधी जी, जो उस जांच कमेटी के अध्यक्ष रहे, ने उन्हें लुगदी देवी का पुनर्जन्म माना था। 
मूवी किसी सत्य घटना पर आधारित नहीं है लेकिन समाज की सच्चाई को बेनकाब करके असली चेहरे को दिखाने का काम करती है।

नासिर काज़मी और इश्क की उदासी..

नए कपड़े बदल कर जाऊँ कहाँ और बाल बनाऊँ किस के लिए...
वो शख़्स तो शहर ही छोड़ गया मैं बाहर जाऊँ किस के लिए...
जिस धूप की दिल में ठंडक थी वो धूप उसी के साथ गई,
इन जलती बलती गलियों में अब ख़ाक उड़ाऊँ किस के लिए...
वो शहर में था तो उस के लिए औरों से भी मिलना पड़ता था
अब ऐसे-वैसे लोगों के मैं नाज़ उठाऊँ किस के लिए..
अब शहर में उस का बदल ही नहीं कोई वैसा जान-ए-ग़ज़ल ही नहीं,
ऐवान-ए-ग़ज़ल में लफ़्ज़ों के गुल-दान सजाऊँ किस के लिए...
मुद्दत से कोई आया न गया सुनसान पड़ी है घर की फ़ज़ा
इन ख़ाली कमरों में 'नासिर' अब शमा जलाऊँ किस के लिए...

शायरी पढ़ के मज़ा आ गया होगा ऐसा लग रहा होगा जैसे हमारी जिंदगी के एक मोड़ को बयां किया गया हो,

नासिर काजमी साहिब का अंदाज इतना रूहानी होता था कि कब आपकी नब्ज पकड़ ले कह नहीं सकते, उनके अल्फाजों में आशिक़ी हर दम मचला करती थी, उनका एक बयान भी है "इश्क शायरी और फ़न बचपन से ही मेरे खून में है" उनके इस बयान ने हमेशा उनकी जिंदगी की हकीकत को दर्शाया है।
मेहनत करना काजमी साहेब ने सीखा ही नहीं, वर्ना विभाजन के वक्त पाकिस्तान जाने के बाद 10 साल की जिंदगी यूं दर बदर ना गुजरी होती। हरफनमौला, मनमौजी,जो सोच लिया वो करना है चाहे फिर वो तकलीफदेह ही क्यों न हो।
उनका एक मजाकिया किस्सा भी है 
जब काजमी साहेब की शादी हुई तो सुहागरात के दिन काजमी साहब ने बीबी को देखते ही कहा कि मोहतरमा आप माफ़ करे लेकिन आपसे पहले मेरी एक बीबी और भी है, ऐसा सुनते ही दुल्हन के होश उड़ गए लेकिन अगले ही पल उन्होंने अपनी किताब "बर्ग-ए-नै” पेश की और कहा कि ये है हमारी दूसरी बीबी।
काजमी साहेब ने दुल्हन को मुंह दिखाई में अपनी वो किताब ही दी थी।

हम शाम को तन्हा बैठे जिंदगी की गाड़ी की बेतरतीब रफ्तार के बारे में सोच रहे थे कि अचानक नासिर साहेब की याद आई तो लगे उनकी शायरी पढ़ने, और पढ़ते पढ़ते खुद को शायरी से कब जोड़ लिया पता ही नहीं चला,मौका लगे तो आप भी काज़मी साहब से रुखसत हो लीजिएगा शायद आपके अंदर की बात इनके अल्फाजों में छुपी हो।

Friday, 11 February 2022

सुशोभित कृत पवित्र पाप

मन तो बहुत था Sushobhit जी की पवित्र पाप को एकांत में समझा जाए, स्त्री पुरुष संबंध के समीकरणों पर जो संवाद उन्होंने लिखे है उन्हें उनकी नजरों से समझने की कोशिश की जाए
स्त्री पुरुष के संबंध को इन्होंने इतनी बारीकी से लिखा है जैसे हम से हमारे ही मन की बात छीन ली हो, वैसे तो पुरुष मन ये स्वीकार नहीं करता लेकिन स्त्री की भावनाओं के आगे हम कुछ भी नहीं, सामाजिक परम्पराओं और नैतिकता के द्वंद में पुरुष का दंभ साफ दिखाई देता है, सुशोभित जी की पवित्र पाप में “प्रेम में स्त्री”पढ़ी तो लगा जैसे वर्तमान की नग्न हकीकत आंखो के सामने हो, कुछ पलों तक सोचता रहा और सोचता ही चला गया, क्या इससे आगे भी कुछ लिखा जा सकता था, नहीं, इन चंद पंक्तियों में छिपी बात शायद ही महान ग्रंथो मे लिखी दिखाई दे, आपके साथ साझा कर रहा हूं शायद आप भी समझ पाए ! 

                     “प्रेम में स्त्री”
“स्त्री प्रेम में हो तो दोष से उसको भय नहीं लगता ।
लक्ष्मणरेखा को लज्जा की देहरी की तरह लांघ जाती है अगर प्रेम में हो।
और पुरुष? पुरुष को तो प्रेम से भय लगता है क्योंकि उसके चित्त में ही दोष है।
पुरुष का बस चले तो प्रेम की अनिवार्यता ही समाप्त कर दे,किंतु बिना प्रेम के स्त्री का समर्पण कैसे मिले ?
विवाह और वेश्यावृति को पुरुष ने इसलिए रचा है, क्योंकि उसे स्त्री चाहिए,किंतु प्रेम के बिना चाहिए।
स्त्री को अगर विश्वास हो कि पुरुष उसका ही रहेगा, तो वो विवाह ही क्यों करे?
किंतु पुरुष पर विश्वास असंभव !
और पुरुष को विश्वास हो कि विवाह से स्त्री उसको मिल जायेगी तो प्रेम करने की जहमत ही वो क्यों उठाए ? 
क्योंकि प्रेम में वह अक्षम !
इस अंतर को समझना बहुत आवश्यक है !
स्त्री प्रेम और दोष को अलग-अलग नहीं देखती, पुरुष देखता है इसलिए स्त्री को दोष मात्र से ग्लानि नहीं होती जैसे पुरुष को होती है ।
स्त्री को कहो कि तुम सुंदर हो तो उसके भीतर कुछ खिल जाता है। 
सुंदर दिखना स्त्री के अस्तित्व की केंद्रीय आकांक्षा है। किंतु यही वह स्त्री है, जो इस बात से आहत होती है कि वह केवल एक देह मान ली जा रही है ! 
स्त्री देह हुए बिना सुंदर होना चाहती है ।
पुरुष देह की सुंदरता से मंत्रविद्ध नाग की तरह आविष्ट होता है,
यह भेद है !
स्त्री पुरुष से कहे कि तुम्हारी देह पर अनुरक्त हूं, तुम मेरे लिए पहले एक देह हो तो इससे पुरुष को गौरव ही होगा, आहत होना तो दूर पौरुष का दंभ इससे पुष्ट ही होगा, वैसा न हो तो उल्टे हीन भावना उसमें आ जाएगी ।
देह बनने से पुरुष आहत नहीं होता, उल्टे राहत की सांस लेगा कि अब प्रेम का स्वांग नहीं करना होगा, स्त्री को प्राप्त करने की लंबी प्रतीक्षा कम ही हुई, नंगे सच को स्वीकार किया गया !
पुरुष सुख का पिपासु है।
स्त्री भी है, शायद पुरुष से अधिक ही होगी किंतु स्त्री को सुख, सुख की तरह नहीं चाहिए उसे सुख प्रेम के आवरण में चाहिए ।
निरे नग्न सुख से स्त्री की आत्मा पूरती नहीं, वह उसको वितृष्णा से भरता है ।
 इतना भेद है!
स्त्री का मन मुझे आकृष्ट करता है उसकी जटिलताओं को जानने में मेरी रुचि है ।
पुरुष का मन तो स्त्री के सामने बालकों की तरह सपाट है स्त्री की एक प्रणयाकुल दृष्टि से ही वह विगलित हो जाता है, और उतार फेंकता है अपने समस्त श्रमस्वेद अर्जित आवरण ।

मुझे विश्वास है कि एकांत में स्त्रियां पुरुषों की इन दुर्बलताओं पर खूब हंसती होंगी !”

Saturday, 28 October 2017

बरसों बाद एक हसीन पल.😍😍

वैसे तो आज का दिन बहुत व्यस्त था लेकिन शाम ढलते-ढलते कुछ ऐसा हुआ कि सारी थकान पल भर में काफूर हो गई..
यकीनन आपके मन में एक छोटा सा सवाल तो आ रहा होगा कि हुआ क्या था, चलो अब सीधा पॉइंट पर आते हैं...

उम्मीद तो नहीं थी कि उनसे कभी मिलना होगा लेकिन एक अकस्मात मुलाकात ने फिर पुराने दिनों को, पुरानी यादों को, पुरानी बातों को आंखों के सामने पलभर में ला दिया। कुछ बदले बदले से लग रहे थे वो,पर चेहरे का नूर आज भी वही था, एक पल के लिए लगा कि मानो वक्त ठहर सा गया हो इस ठहरे हुए वक्त में हमने उनका दीदार किया लेकिन किसी अनहोनी की वजह से हमने अपनी निगाहों को कुछ ही पलों में विराम दे दिया..
 बातें कुछ भी नहीं हुई....
उनके चेहरे का दीदार और उनके हाथों की चाय यह दो ही दुनिया की वो नायाब चीज है जो मेरी थकान को पलभर में दूर कर देती है और आज मुझे यह दोनों फिर से मिल गए,
मेरे खोयी हुयी दिल की रंगत और चेहरे का नूर फिर से लौट आया।
चाहता था उनको जी भर के देखता रहूं..पर ना मेरे पास इतना वक्त था ना ऐसा आलम.....
उनके चेहरे का नूर और चाय का गिलास आज फिर मेरी यादों के पन्नों में कैद हो गए....
Miss You.